मदनाष्टक। गीत
काली घटा घिर आयी रे।
बूँद पड़त सुखदायी रे।।
।। 1।।
मोर पपीहा दादुर बोले
रहि - रहि विरहिन जियरा डोले।
दिल पर मेरे पड़े फफोले
अश्कों से आज नहायी रे।। काली - - - -
।। 2।।
सखियन् के पड़ गये हिडोले
पूज रहे सब शिव-बम-भोले।
ग्रन्थि हृदय की कैसे खोलें
मैं नैनन् नींद नसायी रे।। काली - - - - -
।। 3।।
अश्लेषा मोर सिर पर आवा
साजन बिनु मोहि कछु नहिं भावा।
उर मोर धधकत जइसे तावा
कैसे हिया की आग बुझायी रे।। काली - - - -
।। 4।।
मै जोबन मद से माती
मोरे घरवां दिया न बाती।
देखूं पिया के तब अघाती
तनवा मोर पियराय रे।। काली-----
।। 5।।
टूट गयी मोर नींद निगोड़ी
अखियन् काजल बह गई थोड़ी।
नीवी कवन पिया बिन छोड़ी
रचि-रचि अंग सजायी रे।। काली - - - - - -
।। 6।।
गजरा कजरा पहनूं घघरा
प्रीतम लगायें हैं मदन कै पहरा।
टप-टप बरसैं काले बदरा
सपने उठि मै धायी रे।। काली - - - - -
।। 7।।
बिजुरी चमकै बादल गरजैं
तुम बिन मोरा जियरा तरसै।
जल पाये से काम है सरसै
जीना पिय बिनु दुखदायी रे।। काली - - - - -
।। 8।।
रंग सुने ना मोरी कहना
पीछे पड़ी हैं सारी बहना।
मन भावे नहिं तुम बिन गहना
पीर पोर - पोर बढ़ायी रे।। काली - - - - - -
स्वरचित मौलिक ।। कविरंग ।।
पर्रोई - सिद्धार्थ नगर( उ0प्र0)

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