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जिंदगी

‘जिन्दगी’


“ मंत्र मुग्ध हो कर खोल दो 
दिल के दरवाजे और खिड़कियाॅ॑
प्रफुल्लित है मन 
दीपक के तेज से
वंदन अभिनन्दन देहरी के पार 
नवज्योति सूर्य सा आ गई
देखों! 
आॅ॑गन में आज 
दसों दिशाएं भी चहचहाने लगी
भोर की लालिमा के साथ
पूर्ण क्षितिज पर जैंसे कभी 
रश्मियाॅ॑ रुकती नहीं 
आह्लादित होने पर भी  जैंसे
नदियाॅ॑ थमती नहीं 
दोनों किनारों का पुल साक्षी हैं
वह निरन्तर बहती हैं ,थमती नहीं।
मानों!
उसकी भी अब तमन्ना नहीं 
सूरज को कैद करने की 
अब तो ..!
पक्षियों के जैंसे सांस लेती हैं जो 
वह है ज़िन्दगी!
एहसास और तजुर्बों के साथ –साथ जो पलती
वह है जिन्दगी
मौसम के मिजाज सी जो 
 अविरल गति से बदलती हैं 
वह हैं जिंदगी 
हाॅ॑ वह है जिन्दगी ।।"

रेशमा त्रिपाठी 
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश

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