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प्रतिदिन की अग्नि परीक्षा


                      प्रतिदिन की अग्नि परीक्षा

        
         निवेदिता घर लौटते वक़्त नम आंखों से ऑटो में बैठी सोच रही थी कि सीता ने एक बार अग्नि परीक्षा दी तो उसकी पीड़ा से घनीभूत होकर बाल्मीकि जी ने रामायण महाकाव्य की रचना की। यहाँ न जाने कितनी ही महिलाएं ऐसी है जिन्हें जिंदगी में बार-बार अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ता होगा। निवेदिता पाँच दिनों से प्रतिदिन अस्पताल का चक्कर लगा रही है। उसके पति की तबीयत रविवार से ही खराब है। बुधवार तक स्थिति में सुधार नहीं आने पर हॉस्पिटल में भर्ती करवाना पड़ा। बुधवार से रविवार हो गया अभी तक हॉस्पिटल से छुट्टी नहीं मिली है। सुबह से शाम तक हॉस्पिटल फिर रात में घर की भागदौड़ से वह बिल्कुल थक के चूर है। ऊपर से पति के स्वास्थ्य की चिंता अलग से खाये जा रही है। वो खुद शुक्रवार से बीमार थी। अभी उसका स्वास्थ्य लाभ हो भी नहीं पाया था कि पति की तबीयत खराब हो गई। वह घर जाने से पूर्व डॉक्टर से मिल कर आयी तभी उसके पति ने उससे प्रश्न किया रोज रात में किसका कॉल तुम्हारे मोबाइल पर आया है और कई-कई बार तुम्हारे द्वारा भी कॉल किया गया है? इस अचानक पूछे प्रश्न से उसका दिमाग कुछ मिनट के लिए शून्य हो गया।
क्योंकि इतनी व्यस्तता में उसने परिवार के निकट संबंधों के अलावा तो किसी से बात नहीं किया था। पति की प्रश्न भरी निगाहें उसे देख रही थी। निवेदिता को किसी अनजान व्यक्ति से कोई बातचीत हुई हो वो भी प्रतिदिन ऐसा उसे याद ही नहीं आ रहा था। उसने कहा डायल कर के देख लीजिए  मुझे तो कुछ याद ही नहीं है और जैसे ही नम्बर डायल किया तुरंत उसके दिमाग में प्रतिदिन हॉस्पिटल से आने वाले उसके पति के कॉल की उसे याद आ गयी। उसने तुरंत कॉल काटा और कहा आप प्रतिदिन हॉस्पिटल से पास बेड वाले मरीज के पुत्र के मोबाइल से मुझसे बात किया करते थे। प्रतिदिन रात में तथा सुबह में कई-कई बार आपसे ही बात की गई है। यह कहते हुए निवेदिता कि आंखें नम होने लगी और सारे शरीर में गर्म रक्त का प्रवाह दौड़ पड़ा।
              डॉ० विभा माधवी
             खगड़िया

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