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प्रीतउत्सव गीत'

प्रीतउत्सव गीत' 


" अज्ञानता में ज्ञान देती, प्यार में अश्क देती
 हृदय के भाव से ही हिलोरती 
पथरीले कांटों पर जोश भरती, प्रेरित करती 
जोश भर -भर कर हौसलों में लगन देती
अश्रु सुंदर नैनों से बहाती 
मेरी बहन मुझे बहुत याद आती ।

महक उठता आॅ॑गन मेरा
 जब- जब वह पपीहे सी आवाज करती 
उछलती /कूदती ,मुस्कुराती /लड़ती , लाड़ जताती, धमकियाॅ॑ देती
 प्रेम से अपने आॅ॑गन सजाती
 फूलों से  भी सुंदर  ,चांद सी चमक ले
सूर्य की रोशनी में खग जैसें कलरव दे देकर ऱोती 
मुझे मनाती मेरी बहन मुझे बहुत याद आती ।

एक दिन !
माया मोह तजकर छोड़ देती आॅ॑गन मेरा
 मेरे आॅ॑गन को बैंरागी देती
 ईश्वर से प्रार्थना करती
 मन में आॅ॑गन का प्रेम बसा
 मुड़/ मुड़कर देखती ,रोती, बिलखती
 जिहृवा से भाई /भाई कहकर गले लगती 
मेरी बहन मुझे बहुत याद आती ।

प्रीत उत्सव के पर्व पर मिलती
 आॅ॑गन को वैराग्य से मुक्त करती
 पूजा की थाल लें ,चंदन के लेप से 
कुमकुम से सजाती, हल्दी /अक्षत का टीका लगाती
 लाड़ प्यार जताकर कलाई पकड़ती
 प्रीति का बन्धन फिर   बांध देती 
मीठा खिलाती नजर उतारती
अ‌श्रु से प्रेम देती प्रीतउत्सव निभाती 
मेरी बहन मुझे बहुत याद आती "।।

रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश

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