*मेरी लैखानी हो*
गीत लिखता हूँ मैं,
और गाता हूँ मैं।
मेरी कल्पना हो तुम,
मेरा आधार तुम।
तुमको देखकर ही
मैं लिखता हूँ ।
अब तुम रुठ गए
तो लिखे कैसे हम।।
तुम मेरी प्रेरणा,
तुम मेरी पूजा हो।
तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूँ।
कैसे में अब लिखू ,
गीत मनहर के।
तुम मुझे जो,
देख ही नहीं रहे।।
मेरी याद हो तुम,
मेरे गीत हो तुम।
मेरी लेखनी का,
आधार हो तुम।
अब मुझे से कुछ,
लिखा जा नहीं रहा।
आ जाओ मेरे खयालों,
में प्रिये तुम।।
लोग लिखने को,
मुझे कह रहे।
पर में कुछ भी,
लिख पा नहीं रहा।
क्योंकि मेरी सरास्वती
मुझे से रुठ गई हैं।
कैसे मैं मनाऊँ,पहले ये तो बताओ।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
24/08/2019

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