गणपति वंदना
।। 1।।
जन्मोत्सव मनाते हैँ, वंदनवार सजाते हैँ
मेवा प्रसाद चढ़ाते हैँ, गणपति को हम।
तुम्ही हो गजवदन तुम्ही शंकर सुवन,
तुम्ही हो गौरी नंदन आंखें आज है नम।।
प्रभु हो विघ्न हरण सदा मंगल करण
आया मै तेरे शरण कष्टों को करो कम।
तुम हो सिद्धि सदन हो करिवर वदन
रहते सदा मगन आज बुद्धि है सम।।
।। 2।।
लाज रख लो हमारी पूजा करते तुम्हारी
है फूलों से सजी थारी पूजते असुरारी।
आप हो दया सागर रिक्त मेरी है गागर
छवि तेरी उजागर बड़ी कृपा तुम्हारी।
प्रथम पूज्य देवों के लगता भोग सेवों के
ये पड़े हुए मेवों के चूक हुई है भारी।
हे गौरीसुत सुन लो थोड़ा उसे भी गुन लो
अपने आप चुन लो मति मेरी है मारी।।
स्वरचित मौलिक । ।कविरंग ।।
पर्रोई - सिद्धार्थ नगर( उ0प्र0)

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