*बेरुखी*
विधा गीततेरी बेरुखी से
क्या हो गया।
लिखने बैठे प्रेमगीत...2
लिख जाता लोकगीत।।
तेरी बेरुखी से.......।
समझ नही अब
आ रहा मुझको,
हो रहा ऐसा क्यों
करें क्या हम अब।
तुम ही बतला दो...2
मेरी जानेमन।
बचा दो मुझे तुम
मोहब्बत के चक्कर से।।
तेरी बेरुखी से.......।।
छोड़ दो मुझे तुम,
मेरे हाल पर अब।
जीऊ या मरु में,
तुम्हें क्या करना।
जीवन था अनमोल मेरा..2 लिखते थे जब।।
तेरी बेरुखी से........।।
अब तो सब कुछ
छूट गया मेरा।
तेरे बिछड़ ने से
रुठ गई सरास्वती।
जब से तुमने ....2
मुंह मोड़ लिया।।
तेरी बेरुखी से........।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
31/08/2019

No comments:
Post a Comment