हरि तालिका तीज
सगरों सती भयी हैं व्रती अब
पति लागि खड़ी प्रभु के सब आगे।
विनवैं कर जोरि खोरि छमहुं प्रभु,
मोर दुक्ख दमहुं भाग हैं जागे।।
भूलि गयी अन्न और जल
कांति विमल रस प्रेम सो पागे।
सम्पूरन् अवगुन दूर करो अब
आठहुं याम निरन्तर खागे।। 1।।
तरिहैं तीय तीज रहे सो,
पिय को प्रेम निरंतर बाढ़े।
संग को संगिनि अंग बनी हैं,
नेम बनइहैं सुन्दर काढ़े।।
नैनन् दूर करहु नहिं उनकौ,
आंख को अंजन बनाये के गाढ़े।
प्रेम से पैर पखारत रहिबों,
सेवा में रहिहौं एक पद ठाढ़े।। 2।।
धूप बतास सहौंगी संत्रास,
प्यास से आज कंठ हैं सुखाने।
तेरे लिए तन तजौं सदा,
प्रेम को मेरे तूं माने या न माने।।
सदा सूखी रोटी खाय बसूं,
तेरे प्रेम मे जीवन मोर बिकाने।
बंद जुबान कहूं न किसी सो,
बौरी भयी तेरे नेह में दीवाने।। 3।।
धोती फटी पे गुजारा करौंगी,
नहिं चाहत हौं मै सुन्दर भूषन।
टूटी मड़इया मोहि कोठी दिखै,
पर कोठी-भरोठी लगै मोहिं दूषन।।
खाय चबइना व्यतीत करुं मै
मीठा- मिठौती नहिं चाहौं चूषन।
पूरी करेंगे मुरारी मुरीद
अन्य भेजे नहिं होइहैं पूषन्।। 4।।
स्वरचित मौलिक ।।कविरंग ।।
पर्रोई - सिद्धार्थ नगर( उ0प्र0)

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