लघुकथा-"छुट्टियाँ"
"मेम साहब मुझे चार दिन की छुट्टी चाहिए। क्यों कि मेरा बेटा बहुत बीमार है। डॉक्टर ने उसे टाइफाईड बताया है और कहा है कि उसकी अच्छी तरह देखभाल करूं।"
नौकरानी ने मालकिन से उदास भरे स्वर से कहा।
"ओहो!तुमको तो बस आये दिन छुट्टी मारने का बहाना चाहिए।" मालकिन ने क्रोध भरे स्वर से कहा। तभी मालकिन का मोबाईल बज उठा।उनकी भाभी का फोन था।वे कह रहीं थीं-"शीला, तुम्हारे भैया का प्रमोशन हो गया है।इसी ख़ुशी में हम सबको टूर पर गोवा ले जा रहे हैं।तुमको चलने को कह रहे हैं पर मैंने कहा कि तुम सरकारी कर्मचारी हो न? छुट्टी मिलें न मिले? बोलो क्या इरादा है?"
मालकिन चहकते हुए मोबाईल पर कह रही थीं-" भाभी बस आप टिकिट बुक करवा लीजिये ।अभी मेरे पास इ. एल. यानि कि अर्जित अवकाश मेरे खाते में जमा है बस एक बढ़िया सा बहाना बनाकर दस दिनों का अर्जित अवकाश स्वीकृत करवा लुंगी फिर हमारी तो मजे ही मजे होंगे।"
यह सुनकर नौकरानी बुदबुदाते हुए बोली-",काश! हमारे खाते में भी ऐसी छुट्टियाँ होतीं तो हम भी मजे कर लेते।"
मालकिन ने सुना तो पूछा,' तुमने कुछ कहा क्या?"
नौकरानी ने कहा, " नहीं मेम साहब, मेँ तो ऐसे ही राम का नाम ले रही थी।"
वह सोचने लगी ।यदि वह ज्यादा छुट्टी मांगेगी तो कहीं मालकिन उसकी हमेशा के लिए छुट्टी न कर दें। वह बेबस सी मालकिन को देखने लगी।
डॉ. शैल चन्द्रा
रावण भाठा, नगरी
जिला-, धमतरी
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