लघुकथा-
"अनुसरण"
सरकारी दफ्तर में मिश्रा जी एक क्लर्क से बहस कर रहे थे। कह रहे थे-"अरे भई, इतने छोटे से काम के आप पांच सौ मांग रहे हैं। यह काम तो सौ पचास में निबट जाता है।"
क्लर्क कह रहा था-"मिश्रा जी , ये कोई सब्जी मंडी नहीं है ।जहाँ मोल- भाव हो। यह तहसील ऑफिस है। क्या समझें? हमारे बड़े साहब दस-बीस हजार के बिना तो बात भी नहीं करते तो हम जैसे छोटे कर्मचारी अब हजार-पांच सौ तो लेंगे ही क्योकि हमारे साहब के इज्जत का सवाल है। अब आपही बताइये जैसे मुखिया होगा ।उनके मातहत भी उनका ही अनुसरण करेंगे न भई?"
यह कहते हुये क्लर्क ने अपने मुँह में पान का बीड़ा ठूंस लिया।
डॉ. शैल चन्द्रा
रावण भाठा, नगरी
जिला- धमतरी छत्तीसगढ़
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