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कुर्सी के बीमार बैठें हैं (शाहरुख मोईन)

कुर्सी के बीमार बैठे है


*रंग बदल के कितने सियार बैठे है,*
 जाने कितने लोग कुर्सी के बीमार बैठे है।

 *ग़रीबी मुफलिसी की जद में गिरफ्तार बैठे है,*
 होना था जिनको पर्दे में सरे बाजार बैठे है।

 *पढ़ लिख कर बने वो ग्वार बैठे है,*
 कलम हाथों में रख लाचार बैठे है।

 *अब झूठो के ही पैरोकार बैठे है,*
 जहरीली सियासत बाले करके तकरार बैठे है।

 *बादों बाली सरकार में कितने बेकार बैठे है,*
 आंखों को अपनी करके अश्क वार बैठे है।

*अफसोस मनाते है बेकार बैठे है,*
 दुश्मनों से हम भी करके प्यार बैठे है।

 *तुझको चाहने वाले बेशुमार बैठे है,*
 हम भी तुझसे मुहब्बत कर यार बैठे है।

 *झूठी खबरों के चैनल करके प्रचार बैठे है,*
हम जैसे पागल लेकर झूठे अख़बार बैठे है।

 *मुद्दतों से दिल करके बेकार बैठे है,*
टुकड़ों में करके दिल शाहरुख़ जार जार बैठे है।

*शाहरुख मोईन*
अररिया बिहार

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