महिला दिवस पर कविता
हे कोन यहां पर वीर जिसे में दिल की बात बता पाऊं
हे किस प्राणी में धीर जिसे में मन की पीड़ा गा पाऊं -
कोई मुझमें जान न समझे क्या में पत्थर की मूरत हूँ
मैं भी तो इक औरत हूँ ,
हां मैं भी इक औरत हूँ
हैवानों की दुनियां में ,
लाचार दिखाई देती हूँ
औरत हूँ शैतानों को ,
व्यापार दिखाई देती हूं
सदियों से मैं मांग रही हूं ,
इंसाफ मिलेगा जाने कब
यहां पे मानवता का ,
दिल साफ मिलेगा जाने कब
ये कलियुग है यहां पे जब ,
चीर हर लिया जाता है
कोई कान्हा नहीं बचाता ,
मिलकर लूटा जाता है
मां हूँ ,बहन हूँ ,बेटी किसी की किसी के घर की ज़ीनत हूँ
मैं भी तो इक औरत हूँ ,
हां मैं भी इक औरत हूँ
यहाँ पे मेरी ख़ामोशी का ,
शोर सुनेगा जाने कौन
राधा, सीता और मरियम का ,
दौर सुनेगा जाने कौन
मुझको ज़िल्लत का गर तू , सामान समझता है तो सुन
औरत को दुनिया में गर ,
आसान समझता है तो सुन
एक दौर वो भी आएगा ,औरत , औरत ना होगी
रज़िया, लक्ष्मी, दुर्गा, पद्मा , और भी जाने क्या होगी
एक पल में मर्दानी हूँ मैं दूजे पल ही नसीहत हूँ
मैं भी तो इक औरत हूँ , हां मैं भी इक औरत हूँ
कोई मुझ में........
Op Merotha hadoti kavi
छबड़ा जिला बारां (राज०)
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