कलम लाइव पत्रिका

ईमेल:- kalamlivepatrika@gmail.com

Sponsor

महिला दिवस पर कविता Poem on women's day

महिला दिवस पर कविता


हे कोन यहां पर वीर जिसे में दिल की बात बता पाऊं
हे किस प्राणी में धीर जिसे में मन की पीड़ा गा पाऊं -

कोई मुझमें जान न समझे क्या में पत्थर की मूरत हूँ
मैं भी तो इक औरत हूँ ,
हां मैं भी इक औरत हूँ

हैवानों की दुनियां में ,
लाचार दिखाई देती हूँ
औरत हूँ शैतानों को ,
व्यापार दिखाई देती हूं
सदियों से मैं मांग रही हूं ,
इंसाफ मिलेगा जाने कब
यहां पे मानवता का ,
दिल साफ मिलेगा जाने कब
ये कलियुग है यहां पे जब ,
चीर हर लिया जाता है
कोई कान्हा नहीं बचाता ,
मिलकर  लूटा जाता है

मां हूँ ,बहन हूँ ,बेटी किसी की किसी के घर की ज़ीनत हूँ
मैं भी तो इक औरत हूँ ,
हां मैं भी इक औरत हूँ

यहाँ पे मेरी ख़ामोशी का ,
शोर सुनेगा जाने कौन
राधा, सीता और मरियम का ,
दौर सुनेगा जाने कौन
मुझको ज़िल्लत का गर तू , सामान समझता है तो सुन
औरत को दुनिया में गर ,
आसान समझता है तो सुन
एक दौर वो भी आएगा ,औरत , औरत ना होगी
रज़िया, लक्ष्मी, दुर्गा, पद्मा , और भी जाने क्या होगी

एक पल में मर्दानी हूँ मैं दूजे पल ही नसीहत हूँ
मैं भी तो इक औरत हूँ , हां मैं भी इक औरत हूँ
कोई मुझ में........


                    
   Op Merotha hadoti kavi
   छबड़ा जिला बारां  (राज०)

No comments:

Post a Comment