उनको देख कर जी लेंगें ’
“ आसमान के छत पर देखो,तारों के बरसातों को
महबूबा का घुघट देखों, घुघरालें लटकन बालों को ।।
बादल जैंसे चाॅ॑द को ढकता ,वैसे उनका भी घुघट हैं
बालों के हिलने– डुलने पर, थोड़ा सा चाॅ॑द निकल आता है।।
उस थोड़ी सी रोशनी में, हम अपना पूरा जीवन खोजते हैं
जबकि पता नहीं होता,वह खिला चाॅ॑द हैं या अधखिला चाॅ॑द ।।
हम तो बस जीते हैं उनकी, भीनी– भीनी खुशबू में
इस आसमान के छत नीचे,हम उम्मीद दीया ले बैठें हैं ।।
कल क्या होगा पता नहीं, पर तारों की इस बरसातों में
अबाद रहें वह चाॅ॑द सा मुखड़ा,हम उनको देख कर जी लेंगे ।।"
रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश
No comments:
Post a Comment