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हमीद कानपुरी के ग़जल Hameed kanpuri ke ghazal

ग़ज़ल

सपने  सब बे  नूर  हुये हैं।
दिलबर जबसे दूर  हुये हैं।

घर  में  ही महसूर  हुये हैं।
जब से  वो  पुरनूर  हुये हैं।

डरने  पर  मज़बूर  हुये हैं।
चन्द क़दम ही दूर  हुये हैं।

खूब बड़ों को  गाली देकर,
जग में  वो मशहूर  हुये हैं।

ज़ब्त नहीं जबहो पाया तो,
कहने  पर  मज़बूर  हुये हैं।

उनसे  उनको नफ़रत भारी,
जो  हमको    मंज़ूर  हुये हैं।
हमीद कानपुरी
अब्दुल हमीद इदरीसी,

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