ग़ज़ल
सपने सब बे नूर हुये हैं।
दिलबर जबसे दूर हुये हैं।
घर में ही महसूर हुये हैं।
जब से वो पुरनूर हुये हैं।
डरने पर मज़बूर हुये हैं।
चन्द क़दम ही दूर हुये हैं।
खूब बड़ों को गाली देकर,
जग में वो मशहूर हुये हैं।
ज़ब्त नहीं जबहो पाया तो,
कहने पर मज़बूर हुये हैं।
उनसे उनको नफ़रत भारी,
जो हमको मंज़ूर हुये हैं।
अब्दुल हमीद इदरीसी,
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