काश ! तुम बात मेरी मान लेते
काश! तुम बात मेरी मान लेते,
तो आज इस तरह हम तुम युँ अकेले न होते,
अरमानों की दुनिया जो संजोये थे हमने,
वो ख्वाब सब पूरे हो जाते,
काश ! तुम बात मेरी मान लेते...
मुकद्दर की जंजीर ने खींचा इस तरह कि
ना हम- हम रहे ना तुम-तुम रहे,
काश तुम बात मेरी मान लेते......
तो यह सब कुछ न हुआ होता,
शायद हमारी किस्मत ही ऐसी थी,
लूटी दुनिया ही कहानी थी मेरी,
बगैर तेरे न जीना है जीना तुझ बिन,
बस निशानी तुम्हारी है मेरे जीवन में,
जी रही हूं बस उनके सहारे,
काश ! तुम बात मेरी मान लेते......
वक्त के मरहम ने जीना सिखाया,
साथ तेरा बस इतना ही था मेरा,
बस उसकी याद समेटे हुए हैं,
काश ! तुम बात मेरी मान लेते,
तो आज हम तुम ही अकेले न होते......।।
पूनम सिंह
गरुग्राम हरियाणा
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