मेरी मजबूरी करना पड़ता है
मेरी मजबूरी का आलम कुछ इस तरह है
जैसे जीवन में सब कुछ विरह ही विरह है
जीवन तम सा हो रखा है, लेकिन उजियारा करना पड़ता है,
ये करो, वो करो की आवाज दिन भर गूंजती है
मेरी निगाहें तो हमेशा एकांतवास को ही ढूंढ़ती है
जीवन में कर्म तो बहुत है, समायोजन करना पड़ता है,
कभी तो इस हद तक बढ़ जाती है लाचारी,
लगता है जैसे जीवन हो गया भारी - भारी
दिल करता है रोएं, लेकिन मुस्कुराते रहना पड़ता है,
पसीने से लथपथ हो जाती है धुंधली तस्वीरें
पता नही चलता अब पांवों में कितनी रही जंजीरें
लगता है पांव उखड़ गए, लेकिन चलना पड़ता है,
रूठ के चली जाए जड़ें तो पेड़ गिर ही जाता है
किस को खबर इन लम्हों में कौन सहारा बन जाता है
जहां चाहे जैसा भी हो, रिश्ता बनाए रखना पड़ता है,
हालात ए मजबूरी को दबाकर चलते है
उठते बैठते गिरते खुद को समझाते रहते है
जीवन हो चाहे दुखमय, हसीन बताना पड़ता है।
हालात ए मजबूरी, मुझे ये कहना ही पड़ता है।।
खेम सिंह चौहान "स्वर्ण"
जोधपुर, राजस्थान
धन्यवाद
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