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हमीद के दोहे/Hamid ke dohe/वर्तमान समाज पर आधारित दोहा

 हमीद के दोहे


नफ़रत से बचकर रहो, नफ़रत है इक आग।
बुझने  को बुझ जाय पर, छोड़े  काला दाग।

नफ़रत वाले  खेलते, नफ़रत का जब खेल।
ख़ुद ही जलते आग में, ख़ुद ही  जाते जेल।

सरहद पर घर खेत में, आज जलाओ दीप।
ऐसा  कुछ   होता  रहे, आएँ  लोग  समीप।

काम नहीं जो हो  सके, करना नहीं मलाल।
बढ़कर आगे अब करें, गर हो सके कमाल।

ढककर रक्खें तन बदन, छोड़ें ज़रा घमण्ड।
सर्दी  अब   देने  लगी, थोड़ा  थोड़ा   दण्ड।

हमीद कानपुरी,
अब्दुल हमीद इदरीसी,
179,मीरपुर छावनी कानपुर-4 

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