अजब-गजब संसार है बेटी।
सबके मन का प्यार है बेटी।
कली फूल का हार है बेटी।
करती धरा गुलज़ार है बेटी।
मात पिता की जान है बेटी।
घर आंगन की शान है बेटी।
अपने कुल की मान है बेटी।
मेरी तो पहचान है बेटी।
दोनो जहां की सम्मान है बेटी।
इस जग का समाधान है बेटी।
क्यू सहती अपमान है बेटी।
सबसे अधिक संज्ञान है बेटी।
इन आँखो का ख्वाब है बेटी।
पुष्प चुनिंदा गुलाब है बेटी।
दुनिया मे शुभ लाभ है बेटी।
हर सवाल का जवाब है बेटी।
त्योहारों में इक फाग है बेटी।
लक्ष्मी के संग आग है बेटी।
मीठे गीतों का राग है बेटी।
घर का दूजा चिराग है बेटी।
देखो कल और आज है बेटी।
समय के साथ आवाज है बेटी।
शुभ मंगल आगाज है बेटी।
सुन्दर सकल समाज है बेटी।
दुनिया में बस अनूप है बेटी।
देखो ज्ञान का कूप है बेटी।
सम ममता का रूप है बेटी।
कहीं छांव कहीं धूप है बेटी।
बस न अपनी जागीर है बेटी।
सबसे बढ़कर धीर है बेटी।
सजल नयन का नीर है बेटी।
सकल चमन का पीर है बेटी।
सुगन्धित फूलों का इत्र है बेटी।
हां सबसे बढ़िया मित्र है बेटी।
मात शारदे का चित्र है बेटी।
मूल जगत का चरित्र है बेटी।
शीतल सी मंद बयार है बेटी।
बरखा की चंद फुहार है बेटी।
खिले चमन की बहार है बेटी।
'साधक' गंगा की धार है बेटी।
प्रमोद 'साधक'
रमपुरवा रिसिया बहराइच
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