कविता - आत्मा की शिक्षा
अमर हूँ, अजर हूँ;
मैं ख़ुद ही डगर हूँ।
बस बदलूँ शरीरा,
नहीं कोई मेरा।।
आज इसके यहाँ हूँ,
कल उसके वहाँ हूँ।
न ताक़त है कोई,
जो रोक ले मोई।।
मुझसे ये शहर है,
मुझसे ही लहर है।
मुझसे ही बना है,
क्यूँ करता कहर है।
जो जाने है मुझको,
वो करता करम है।
है इन्सान अच्छा,
जो जाने धरम है।।
करे सबकी वो सेवा,
न चाहे वो मेवा।
यह जीवन है अन्तिम,
और एक दिन मरण है।।
कवि - मनीष कुमार मिश्रा
डालटनगंज

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