कवि की पहचान
ना महलों से दोस्ती
ना ग़रीबो दुश्मनी निभाता,
पापी को पापी ही कहता है
सच्चाई पे सिर्फ मरता है।
ख़्वाहिश नही कुछ पाने की
जन की पीड़ा का दर्पण है,
व्यथा को प्रकट करता है
कुछ को खटकता कुछ को भाता है।
भूखा मर जायेगा
रुपयों के आगे दुम नही हिलाएगा,
लेखन ही जिंदगी आन-बान-शान है
उसमे बहुत स्वाभिमान है
यही उसकी पहचान है।
शब्दों से वो खेलता है
छुपे हुए को उजागर कर देता है
कल्पना भी खूब करता है
चारो ओर नजर घुमाता है
हर विषय पर कलम चलाता है
इतिहास भूत भविष्य
वर्तमान को लिखता है
आने वाली पीढ़ी को ज्ञान देता है
वो अमर हो जाता हैं।
कवि मस्ताना
No comments:
Post a Comment