*इतने सुकरात कहां से लाये हम*
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जब नित काट रहे तुम बस पेड़ो को।
फिर रिमझिम बरसात कहां से लाये हम।
जब नित सब जुटे यहां गर्भ परिक्षण में।
फिर बेटी का अनुपात कहां से लाये हम ।
जब नित जहर की नदियां बहती है।
फिर इतने सुकरात कहां से लाये हम।
जब नित छोटी उपलब्धि भूल रहे तुम।
फिर सुन्दर सौगात कहां से लाये हम।
जब नित छोड़ रहे सब मिल रोज़ो को।
फिर अफ़तारी जमात कहां से लाये हम।
जब नित लड़ने मरने की सोच रहे सब।
फिर प्यारी मुलाकात कहां से लाये हम।
जब नित तलाक तेरे जहन में हमदम।
फिर दिलकश जज्बात कहां से लाये।
जब नित खेल रहा कोई अपना जीवन से।
फिर लड़ने की औकात कहां से लाये हम।
जब नित वह जाता रहा रंगी गलियों में।
फिर हसीन वो रात कहां से लाये हम।
जब नित बिकते रिश्ते है बेभाव यहां।
फिर 'साधक' बारात कहां से लाये हम।
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प्रमोद साधक
रमपुरवा रिसिया बहराइच
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