आशा की किरण
हुआ जन्म जब इस धरती पर तब मैं कोरा कागज थाहस खेल रहा था बचपन में
मन में आशा का बादल था
बचपन से उभर बड़ा हुआ
अब उम्मीदों का सागर था
चल पड़ा उधर मैं आशा में
पीछे मुड़कर न देखा था
हुआ जन्म जब इस धरती पर तब मैं कोरा कागज था
हर दिन एक नई उमंग मन मे
ले चल पड़ता मंजिल की ओर
न चल सका पता मंजिल का मुझे
मंजिल का तट तो ऊंचा था
चलते चलते कब बड़ा हुआ मुझे नही कुछ मालूम था
हुआ जन्म जब इस धरती पर तब मैं कोरा कागज था
आशा का अंधेरा काला
कि उजियाला दिल तक जा न सका
दौड़ता रहा मैं हिरणों की तरह पर कस्तूरी का पता मैं लगा न सका
आशा थी भभरे कि जैसी होगा नया सबेरा कब
मिले नया रस कलियों का ऐसा बो रैन बसेरा था
बढ़ चला जिंदगी के अंत मे जब
फिर भी आशा का डेरा था
हुआ जन्म जब इस धरती पर
तब मैं कोरा कागज था
सूर्या शर्मा मगन
इटावा उत्तर प्रदेश
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