एक मात्र स्त्री
एक मात्र स्त्री रह गई
लिखी गई कि रचनाएं, जो किताबों में धरी रह गई
एक मात्र स्त्री
एक मात्र स्त्री रह गई
आँचल मैला है, दाग के लग गए
इंसाफ मांगने चले थे, बदले में सुलग गए
मिला कुछ नहीं, इंसानियत मरी रह गई
एक मात्र स्त्री
एक मात्र स्त्री रह गई
आँखों के दीपक, आँखों में बुझ गए
हर तरफ किस्सा है, किस्से में जुझ गए
ये पीड़ा दर्दनाक है
ये स्थिति शर्मनाक है
ये नयनों के अश्रु
ये अपने ही शत्रु
कुछ दिनों का मुद्दा नहीं, ज़िंदगी भर का सवाल हूँ
सवालों में मैं खड़ी रह गई
एक मात्र स्त्री
एक मात्र स्त्री रह गई
सहनशीलता की मूरत
ममता सी सूरत
कभी दामिनी
कभी नंदिनी
आज़ाद भी हूँ
बर्बाद भी हूँ
इन बेडियों में बंधी रह गई
एक मात्र स्त्री
एक मात्र स्त्री रह गई
नारी अबला है या सबला
या अपने ही आँगन की बला
ज़िन्दगी के अंधेरे में ये काले रंग
उन काले रंगों में डसते भुजंग
गुनाहों को हवाला देती है ये दुनिया
पर किस्मत का खेल तो देखो, ये दुनिया बाइज्जत बरी रह गई
एक मात्र स्त्री
एक मात्र स्त्री रह गई.....
कवयित्री-अंजलि बच्चन सिंह
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