विधा– कविता
शीर्षक–‘स्मृतियां’
“दर्द का सा नशा हैं स्मृतियों में,
जो अधरों पर अदा रूप में आता हैं।
इन्द्रधनुष सा रंग दिखाता,
औ वीणा सी झनकार दे जाता हैं।।
जिसके आंसू कल तक घड़ियाले थे,
अब वह गंगाजल सा पावन हैं।
मन्दिर,मस्जिद, गुरुद्वारें सब
उसके पग चिन्हों से अवगत हैं ।।
सूने पथ का वह राही था,
किन्तु अंधेरों में भी लालायित था
सूखी डाली सा जीवन ले,
वह अम्बर को छूने निकल पड़ा।।
अविरल गति से वह दौड़ा,
अपने संघर्षों का मंत्र लिए।
धीरे–धीरे उदित हुआ वह सूर्योदय में
अपने तप की स्मृतियां ले।।"
लेखिका – रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश।
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