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नन्हा पौधा....

शीर्षक -नन्हा पौधा


है रिश्ता लम्बे अरसे से
इंसा और बृच्छ से जो
न जाने बो कहाँ खो रहा
रिश्ता प्रेम अमर था जो

नन्हे पौधे को पिला नीर
पाल पोशकर बड़ा किया
था प्यार किया बच्चों से जिनको
उनके जीवन का आधार बना

जिन हाथों से जल देकर
नन्हे पौधों को पाला था
आज उन्ही हाथों में कुल्हाड़ी
ले चला आज बो मानव था

एक एक पत्ती एक एक डाली
लहलहा रहे थे खुश होकर

किसी डाल पर कलियों थी तो किसी डाल पर फूल खिले थे
जो मन को खूब लुभा रहे थे
अंधा हो चला आ रहा था बो
अपने स्वार्थ के कलश लिए
जाकर काट मैं दूंगा उसको
जो मानव जीवन का आधार बने
लालच ओर स्वार्थ में डूबा
इंसा ये भी भूल गया

हर छड़  प्रति पल जो स्वांस खीच रहा
अब बो ही पौधा छोड़ रहा
जो कर्ज था तेरा उस पौधे पर
बो सब उसने लौटा डाला
क्या हक है अब उस पर तेरा जो उठा कुल्हाड़ी दौड़ चला
लालच और स्वार्थ सब छोड़ो
छोड़ो अब सब नादानी
नन्हे पौधों को बना मित्र
देदो तुम उनको पानी
छोड़ दो सारी नादानी

स्वरचित - सूर्या शर्मा मगन

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