दो जून की रोटियाँ (ग़ज़ल)
हुस्न की अदा से गिराकर बिजलियाँ।
इस कदर न दो जवानी में धमकियाँ।
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माना कि बेबस जमाना तेरे दीदार को,
हमें भी आ रही वक्त बेवक्त हिचकियाँ।
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बाग में न जाया करो बे पर्दा अकेले,
अपने ही घर में शर्माती है तितलियाँ।
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और हसीन हो न जाए दिल का मंजर,
इश्क में जो तुमने चढ़ाई है त्योरियाँ।
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दिल में मोहब्बत का गुमसुम तूफान है,
बस पता नही है कुछ तेरी बेजारियाँ।
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ये जीस्त सज़ा बनकर कर रही गुज़ारा,
कहाँ जाऊं कैसे बनाऊं कोई आशियाँ।
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'साधक'इस उम्मीद में जिन्दा है धड़कनें,
साथ तोड़ूं फकत दो जून की रोटियाँ।
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स्वरचित-
••••••••••••• #प्रमोद साधक••••••••••••
रिसिया बहराइच
========988 988 60 61======
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