दिलवर न मिला (ग़ज़ल)
उनकी झील सी आंखो का मंजर न मिला।इश्क में जबसे हुआ बेघर घर न मिला।
साहिल पर खड़ा फ़कत ताकता रह गया,
फिर भी उतना गहरा समन्दर न मिला।
हमने अपने मौत की तारीख मुकर्रर की,
बस कत्ल करने के लिए खंजर न मिला।
उंची उड़ान की सोच दिलों-दिमाग में उभरी,
बारिश के वक्त खाली अम्बर न मिला।
उनकी मरहूम यादों में जी रहा हूं लेकिन,
बस उनके जैसा हमें मुकद्दर न मिला।
मैंने घोसले के लिए कुछ तिनके जुटाए थे,
मगर रात गुजारने के लिए चद्दर न मिला।
हो जाते हम भी किसी के तलबगार 'साधक'
जमाने में कोई ऐसा मुझे दिलवर न मिला।
स्वरचित-
प्रमोद वर्मा #साधक
रमपुरवा रिसिया बहराइच
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