सुषमा
कश्मीर पे तिरंगा फहरा करके
हिंद को अखंड स्वराज दिला करके।
सुषमा - सुषमा अपनी विखेर गयी
क्यों आंखें हमसे फेर गयी।।
तूं विश्व के नारियों की शक्ति थी
देश के प्रति पूरी निष्ठा भक्ति थी।
वसुधैव कुटुम्बकम् के प्रति आसक्ति थी
वाक्पटुता से जग को लथेर गयी।। क्यों आंखें
फूलों सी वह सुकुमारी थी
वह बाग नहीं फुलवारी थी।
देश की मानो चाहरदीवारी थी
शत्रु दिलों में भी चित्र उकेर गयी।। क्यों - - -
कहने को तो वह रानी थी
पर रानियों की महारानी थी।
विद्वानों में सबसे ज्ञानी थी
क्यों तूं बड़े जल्द सबेर गयी।। क्यों----
वह कुशल महानायिका नेत्री थी
समर भूमि की अभिनेत्री थी।
भारत वासियों के लिए क्षेत्री थी
जन-जन के दिलों को पेर गयी।। क्यों - - - -
ईश्वर तेरी कैसी माया
कहीं धूप है कहीं है छाया
तुरत हँसाकर तुरत रुलाया
सुषमा की सुषमा घेर गयी।। क्यों - - -
अश्रु पूरित नेत्रों से श्रद्धांजलि
सुमनों से भरी है मेरी अंजलि।
रंग करते अर्पित गीतांजलि
हाय. आज तूं राख की ढेर भयी।। क्यों-
स्वरचित ।। कविरंग।।
पर्रोई - सिद्धार्थ नगर (उ0प्र0)

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