आये नहिं सजना
नैनन राह निहारूं रे अये नहिं सजना,कर कुरकै खुरुकि बाजै मोर कंगना।
सागर तीरे जल उछरत धीरे संग ना,
पागल भयी पुकारत हयीं आ अंगना।।
पर्वत आगे पीवत मन पागे ये गगना,
नहिं कछु कहै बनै अब मोसो जगना।
लागी लगी भयी मै ठगी दिखै दंभ ना,
चोली चीर चुअत रस भीगै मयंकना।।
स्वरचित ।।कविरंग ।।
पर्रोई - सिद्धार्थ नगर (उ0प्र0)
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