यमुनोत्री वर्णनम्
पथ है महा विकट पल-पल को संकट, हिम अति संनिकट यमुन शुभ्र जल।
आरत को पुकारत कोउ नहिं सम्हारत, हृदय है विदारत सुषमा है अमल।।
ठंडक बड़ो दिखात धुले तरु पात-पात, दिव्य दर्शन करात मन भयो निर्मल।
झरना झरत नीर क्षण में खोवत धीर, शीत होत है शरीर हृदि खिलो कमल।।
स्वरचित ।। कविरंग ।।
पर्रोई - सिद्धार्थ नगर( उ0प्र0)
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