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नमामि गंगे

नमामि गंग



                           ।। 1।।

गोमुख से गंगोत्री  निकसी, धार  प्रचंड  धरा  पर   आयी
सगर सुतन को तार रही, कृपा पूरन आज भगीरथ छायी।
धार में तेरे बहि जात पषान , तेरे हेतु ही भू हरियाली पायी
गंग नमामि तोंहिं बारम्बार, वेद पुरान कल कीरति  गायी।।

                                 ।। 2।।
स्वर्ग से गिरी शिव जटा थम्ही, वेग प्रचंड विखंड दिखाई 
जटा लट पट भांति गिरी, फिरी तब जान्ह्वी माई  कहायी।
बर्फ गलै पिघलै पल-पल, छल छहरत बूंद सदा सुखदायी
अब मातु को दर्शन रंग करैं, होत   मनोरथ  पूर्ण  परायी।।

                                ।। 3।।
गिरि ऊपर बहु फल-फूल लसैं, पादप सेब को सुंदर सुहाई
दारु देवदार  बड़ो अति सोहत, पास दिखै वह गहरी खाई।
वाहन बसे भय विशेष  दिखै,फैली चहुँ सुषमा अधिकायी
राह थकान  तन  साल  रही, कष्ट कटै उस वारि  नहायी।।

                                 ।। 4।।
तरसैं देव वो नहाने को नीर, धीर धसैं दबि देत दुहाई
शीतल शुभ्र सुखद  सुनीर, पीर हरै वह वारि  वराई ।
फीको परै पीयूष भी तहाँ, पानि पिये नहिं होत खराई
रंग   बेरंग   करंग   गहे,  थाह लगावत नाहिं भलाई।।

स्वरचित मौलिक            । ।कविरंग ।।
             पर्रोई - सिद्धार्थ नगर( उ0प्र0)

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