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कौन हो तुम

*कौन हो तुम*

तुम कहते हो जान हूँ
              मान लिया मैने।
कुछ कहने को तुमने
             छोड़ा ही नहीं।
कैसे हम कुछ कहे
           समझ नही आता।
उलझन में फस गया
             कैसे निकलू में।।

दिल दिमाग मे अब
            तुम ही बसते हो।
सोये या जागे हम
       पर तुम ही देखते हो।
ऐसा मुझको पहले
                होता नही था।
अब क्यों मुझको हो रहा,
        कोई तो बतलाओ।।

बिन जान पहचान के
           क्यों प्यार हो रहा।
वर्षो से जाने उसे
         ऐसा क्यों लग रहा।
नाम पता और शहर,
          कुछ भी ज्ञात नहीं।
दिल मे आके बस गई
           प्यारी सूरत तेरी।।

अब तो में खोज रहा
                तेरी सूरत को।
बर्षो से रह रही है
              जो दिल में मेरे।
कैसे ढूंढे अब उसे
               कोई तो बोलो।
सुनो मेरी बात को, ध्यान लगाकर तुम।
*कोई और नहीं है,*
    *वो है आत्मा तेरी*।।

जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
30/08/2019

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