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एक नई सी भोर की प्रतीक्षा ek nayi so bhor ki pratiksha

एक नई सी भोर की प्रतीक्षा 

है न सबको... सब चाहते हैं हम फिर से सरपट दौड़ें...हालात सामान्य हों जल्दी , घर से निकलें, जाने कितना कुछ खो बैठे हों..... लेकिन   सीमित वर्ग ऐसा भी भी है जो दिन रात जग रहा है....वो सोचता है  कब हालात सुधरें और वो घर जाएँ...वो महीनों से सिर्फ अपने फर्ज के लिये जाग रहा है.... समय की ताकत देखिये....सत्ता, पद, पैसा, जिसे कामयाबी की सीढ़ी मानी जाती है,  यही है न  जो न्याय, क़ानून और सच को अपनी जेब में रखने का दावा करते हैं....सब लाचार, हम जानते हैं सदियों से पावर और पोजीशन इसी के लिये युद्ध हुए...कितने उगते और ढलते सूरज का  साक्षी रहा ये मानव इतिहास.... किन्तु सदा न अंधेरा रहा न उजाला...ये अघोषित सा युद्ध पूर्वनियोजित है...ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है जब तक रहस्य की परतों के तार सुलझेंगे तब तो लाशों के कहर से दुनिया छटपटा जाएगी. अपने जख्मों के दर्द का आभास लिये उसका कोई कोना अवश्य प्रतिशोध की ज्वाला लिये जलता रहेगा. हम और आप तो इस तीसरे महायुद्ध के साक्षी बने ही हैं लेकिन इतना तो समझ ही सकते हैं की समय सबसे बलवान है ये अक्षरशः सत्य है... महाभारत.... की कुलबधु द्रोपदी एवं कुलबधु सीता ने फिर से शायद यही कहना चाहा..... कितने भी सक्षम क्यों न हों कठिन परीक्षा की अग्नि में समय कभी भी आपको झोंक सकता है अगर सच में स्वर्ण हैं तो निखर जायेंगे वरना बिखर जायेंगे... ये राजनीति युगों से न ख़त्म हुई न होगी दुष्ट सदा रहे हैं और कुछ देव भी.... अनंत काल से सत्ता, मद अहंकार, शक्ति के लिये शासक लालायित रहे हैं.... किन्तु
फिर से नया आदित्य उदित हुआ..... हाँ ये विनाश फिर इतिहास के स्याह अक्षरों में लिखा जायेगा... ये दर्द आसानी से नहीं भूला जायेगा जख्म बहुत गहरे हैं... 
टीस तो इतनी गहरी है की सदियों तक कराह सुनाई आएगी इंसान ने ही इंसानियत को धोका दिया है यही कहानी फिर से इतिहास में दर्ज होगी. निकलने के पहले एक बार अपने अहंकार से जरूर मिलें और वक्त के तराजू पर उसका वजन करें तो शायद जिंदगी आसान और भार कुछ कम लगे और फिर से हम मुस्कुरा सकें 
हालाकि जानती हूँ ये मेरी एक सोच मात्र है... 

रचनाकार
पूजा नबीरा काटोल नागपुर 
महाराष्ट्र स्वरचित

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