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मजदूर की पीड़ा Mazdoor ki pida

मजदूर की पीङा....... सूजल



कंधों पे उठा-उठा के पत्थर, 
खामोश कर्मरत सतत, 
बहुमंजिला भवन बनाये, 
बहाकर पसिना दिनरात, 
कितनो के स्वप्न सजाये, 
उस मजदूर की व्यथा, 
उस मजबूर की पीङा, 
कभी हम समझ न पाये, 
कभी मिल न सका उसे दो वक्त का निवाला, 
न जाने उसके सीने में दर्द है कितना दबा, 
अपनी व्यथा वो दिखा न पाया, 
अपनी पीङा वो समझा न पाया, 
न जाने कितने निर्माण उसने भुखे पेट ही किये, 
फिर भी न आह की न शिकवे ही किये,
वाह रे मजदूर तेरी जिंदगी, 
सच्चे कर्मवीर की है जिंदगी, 
कभी कर्म से मुंह न मौङा, 
कभी कर्म अधूरा न छौङा, 
कभी तो जानेगी दुनिया तेरी पीर भी, 
कभी तो बदलेगी तेरी तकदीर भी.. ।।

बीएन गर्ग शिक्षक 
जैसलमेर 345027

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