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बचपन bachapan कविता

बचपन

वो गुडिया के बाल वाला बाबा.........
बालों में सफेदी
अधरों पर मुस्कान लिए
आंखों में उम्मीदें
और स्वप्न हजार लिए
वो गुडिया के बाल वाला बाबा.... 
टन टन की ध्वनि से
कानों में ध्वनि यन्त्र लगाए
खुद ना सुनते हुए भी
औरों को सुनाता
वो गुडिया के बाल वाला बाबा... 
बचपन उसका मुस्का रहा
पास उसे बुला रहा
पर बुढ़ापे की सफेदी ने
संघर्ष के थपेड़ों ने
सब कुछ भुला डाला
वो गुडिया के बाल वाला बाबा..... 
देख बच्चों के आगमन में 
स्वयं की आजीविका
मंद मंद मुस्काता 
हंसी ठिठोली उनसे करके
समीप उन्हें बुलाता
वो गुडिया के बाल वाला बाबा..... 
गुडिया और बाबा को देखो
एक के बालों से बचपन खुश होता
एक के बालों में बचपन रोता
एक लिए गहरी मिठास
एक ने लिया अनुभव खास
वो गुड़िया के बाल वाला बाबा.... 
उसकी आंखों में ईमानदारी देखी
दूर तलक मैंने हर बार देखी
गली मोहल्ले के हर कोने में
उसका मैंने हंसता बचपन देखा
वो गुडिया के बाल वाला बाबा..... 
निकला मेरी राहों में कुछ पदचिन्ह छोड़
ले गया साथ कुछ दुआए अनमोल
हर जगह मैंने उसकी आहट सुनी
बेटी की शादी, मकान की चिंता सुनी
बिना कुछ कहे बहुत कुछ कह गया
बेचकर वो गुडिया के बाल मुझे
मेरे हिस्से में कुछ विचार दे गया 
वो गुडिया के बाल वाला बाबा.......!

अंजू अग्रवाल" अंजुल"

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