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कैसा बंधन जो हम निभा रहे....नेहा जैन

     कैसा बंधन 

न आना न जाना
न कोई रिश्ता पुराना
फिर भी लगता है जैसे तुमसे परिचय पुराना
नही जानती क्यो करती हूँ
तुमपर इतना विशवास
कौन हो तुम दोस्त या मार्गदर्शक
नाम नही इस रिश्ते का
चुपके चुपके दुनिया से
आँखों मे बसते हो तुम
यह मौन की कैसी भाषा है
जो तुम समझो और हम
बिना सबंध के ये
कैसा बंधन जो हम निभा रहे
मैं यहां तु वहां
न मिलान न विछोह है
बस निःशब्द सा
बजता कोई संगीत है

नेहा जैन
ललितपुर

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