कविता - पिता
हाथ थामकर जिसके बचपन बीता मेरा साराकंधे पर बैठकर घुमा मैने जग सारा
सही गलत सिखलाया जिसने
दर्द मे भी मुस्काया जिसने
पिता बनकर जिसनें मेरा
जीवन से परिचय करवाया
ऐसे पिता को कोटि कोटि नमन मेरा
मेरे लिए जो कड़ी धूप मे भागा दर्द न अपना दिखलाया
बना रहा पत्थर सा सख़्त
माँ की ममता देखी मैंने
पिता के प्रेम को न जान सका
डांटकर मुझे कब कब रोए
कभी भूखे पेट भी सोए
नही पिता बनना आसान
मिटाकर जिसने अपनी पहचान
मेरे नाम मे ही तलाशें अपने निशान
मेरा भविष्य सजाने के लिए
अपना वर्तमान खोता रहा
अपने दुख पी पी के मेरी खुशियां सिलता रहा
कमजोरिया सारी मेरी अपनाकर
अपनी ताकत देता रहा
ऐसे पिता को कोटि कोटि नमन मेरा
नेहा जैन
ललितपुर
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