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हिरण और खरगोश की कहानी
यह कहानी खरगोश or हिरण से शुरू होती है| कहानी में खरगोश हिरण के बच्चे से दौड़ में पीछे रह जाता है| हिरण का बच्चा घर से बहुत दूर भागते - भागते एक पहद से टकरा जाता है और उसे चोट लग जाती है| उसे सभी जानवर चुप कराने की कोशिश करते है लेकिन चुप नहीं होता है| उसकी बात को सुनकर सभी जानवर हँसने लगते है| आइए कहानी को शरू करते है|
एक जंगल में हिरण का परिवार रहता था। उस हिरण का एक प्यारा सा, सुंदर सा बच्चा था। एक दिन खरगोश से दौड़ हुई और दौड़ में हिरण का बच्चा खरगोश से आगे निकल गया। हिरण का बच्चा जंगल पार कर गया| हिरण का बच्चा भागता रहता है| वह रुकता ही नहीं और भागता जाता है| भागता जाता है| वह धीरे - धीरे खेत पार कर गया, नदी भी पार कर गया, लेकिन वह पहाड़ को पार नहीं कर पाया। पहाड़ की चट्टान से टकराकर गिर गया और जोर – जोर से रोने लगा।
ये सब वहाँ बैठे बंदर ने देखा or हिरण के बच्चे की टांग सहलाई पर चुप नहीं हुआ। उसके पैर में दर्द होता रहा| फिर भालू दादा ने गोद में उठा कर खिलाया, फिर भी हिरण का बच्चा चुप नहीं हुआ। उसके बाद सियार ने अपना नाच दिखाया, उससे भी चुप नहीं हुआ, फिर हिरण की मां आई वहाँ दौड़ते-दौड़ते आ गयी| हिरण की मां ने उसे प्यार किया और कहा चलो उस पत्थर की पिटाई करते हैं। फिर हिरण का बच्चा बोला नहीं! उसको चोट लगेगी तो वह भी रोने लगेगा।
उसके बाद हिरण के बच्चे की मां हंसने लगी, बंदर हंसने लगा, भालू हंसने लगा, खरगोश, सियार आदि सभी जानवर हँसने लगे| सबने उस हिरण के बच्चे को बतायाँ की पहाड़ को मारने से पहाड़ को चोट नहीं लगता है| पहाड़ अत्यंत शक्तिशाली है|
शिक्षा – हिरण और खरगोश की कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है कि बच्चों को सजीव निर्जीव का ज्ञान नहीं है| इसीलिए हिरण के बच्चे को लगा की उसकी तरह पहाड़ को भी चोट लग जाएगी|
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