*बेटी का बाप हूँ*
सर उठा कर चल नही सकता।बीच सभा के बोल नही सकता।
घर परिवार हो या गांव समाज।
हर नजर में घृणा का पात्र हूँ !
क्योकि “बेटी” का बाप हूँ !!
जिंदगी खुलकर जी नहीं सकता।
चैन की नींद कभी सो नही सकता।
हर एक दिन रात रहती है चिंता।
जैसे दुनिया में कोई श्राप हूँ !
क्योकि “बेटी” का बाप हूँ !!
दुनिया के ताने कसीदे सहता।
फिर भी मौन व्रत धारण करता।
हरपल इज़्ज़त रहती है दाँव पर।
इसलिए करता ईश का जाप हूँ !
क्योकि “बेटी” का बाप हूँ !!
जीवन भर की पूँजी गंवाता।
फिर भी खुश नहीं कर पाता।
रह न जाए बेटी की खुशियो में कमी।
निश दिन करता ये आस हूँ।
क्योकि “बेटी” का बाप हूँ !!
अपनी कन्या का दान करता हूँ।
फिर भी हाथजोड़ खड़ा रहता हूँ।
वरपक्ष की इच्छा पूरी करने के लिए।
जीवन भर बना रहता गूंगा आप हूँ।
क्योकि “बेटी” का बाप हूँ !!
देख जमाने की हालत घबराता।
बेटी को संग ले जाते कतराता।
बढ़ता कहर जुर्म का दुनिया में।
दोषी पाता खुद को आप हूँ।
क्योकि “बेटी” का बाप हूँ !!
वैसे तो आज कल की बेटियां बहुत ही बहादुर और निडर है परन्तु वर्तमान कर हालात को देखकर डर लगता है। देश के जो हालात है उससे देखकर बहुत ही अफसोस होता है कि क्या सोच रखते है और फिर देश का कानून क्या करता है। इसलिये एक बेटी का बाप हूँ इसलिए डरता हूँ।
इस बात को ध्यान में रखकर बेटी का बाप हूँ कविता लिखी है।
संजय जैन (मुम्बई)
13/06/2019
जय जिनेन्द्र देव की
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