विधा – कविता
शीर्षक– ‘ अंतिम सफर’
“मोहब्बत
चांद की रोशनी में थी
तो कभी चांद की गोदी में बैठा प्रेमालाप कर रहा था
एक दिन उसी चांद की रोशनी में एक जबाज सिपाही
अपने अंतिम सफर का मधुपान कर रहा था ।
हंसो हंसो उसके प्रेमालाप या अंतिम समय में
नियति ऐसी व्यंग्यमयी मुस्कान कर रहा था
आंख के अश्रु से,वियोग के प्रेम से
नियति भी अपना समय परिवर्तन कर रहा था
देश से प्रेम करने की कीमत वह जबाज दे रहा था
जोअपनी मां के आंचल से अम्बर सजा रहा था
पिता के सहारे की लाठी में तिरंगा लगा रहा था
पत्नी के सिंदूर को केसरिया रंग दे रहा था
बेटी के जीवन को हरे रंग की स्मृति दे रहा था
बेटे के जीवन में श्वेत रंग के जैसे शान्ति का ज्ञान दे रहा था
देखो वो मोहब्ब्त से लिपटी रोशनी के संग
आज वही तिरंगे से लिपटा प्रेमालाप कर रहा है
वह अपने अंतिम सफर में देश प्रेम का मधुपान कर रहा है ।।"
जय हिन्द ।
लेखिका– रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश
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