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आसार संसार


।। असार - संसार।।

कैसे   मैं    कह  दूं
झूठा   है    संसार
छिपाने से छिपता कहां
अंतर   का   प्यार
आंखों  पे  लगा लो
चाहे   चश्मा   हजार।। कैसे - - - -

मन खुश एकाएक
करता द्विगुणित सौंदर्य ऐनक
यही  तो बढा़ता चेहरे की रौनक
क्यो लोग कहते इसको असार
दिल मे गुदगुदी उठती बारम्बार
तेरे  पीछे  पड़ा छूटा घर - बार।। कैसे - - - - -

तूं महकते पुष्पों की  घाटी
जहां पग रखे महकती माटी
कौन मिटायेगा प्राचीन परिपाटी
एक ही पाठशाला की तू सहपाठी
चाहे   लम्बी  हो  चाहे    हो  नाटी
कहां मिलने वाला तुमसा दिलदार।। कैसे - - - - - -

कितना सुन्दर मुख सरोज
खिली कांति वदन पे ओज
उसपर शोभित उन्नत उरोज
है बेशकीमती मेरी   खोज
मै लुब्ध भ्रमर तूं वन अम्भोज
खिल रहा गले में स्वर्ण हार।। कैसे - - -

योगी मर रहे वहां के लिए
मै मर रहा जहाँ के लिए
तुझे बनाया खुदा यहां के लिए
पर्वत पर जा बैठूं कहां के लिए
अकेले कैसे छोड़ूं  हहा के लिए
तेरे  सामने तो स्वर्ग   बेकार।। कैसे - - - - -

चमकती कपोलो पे  चमक
होता मुर्छित जो पाता झलक
उठ रहा मन मे मिलन की ललक
झूठे  ही कह दूँ गिरती   पलक
तुम्हें देख मुस्कराने लगती सड़क
सच्ची  मानो दिल  है  तार-तार।। कैसे - - - - - -

                    ।। कविरंग।।

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