दीक्षा की गुहार
श्रध्दा भक्ति विनय समर्पण,का इतना फल हो।
मेरी दीक्षा गुरुवर तेरे,
कर कमलो से हो।
जन्म जन्म से भाव संजोये, दीक्षा पायेगे।
नग्न दिगंबर साधू बनकर, ध्यान लगायेंगे।
अनुकम्पा का बरदहस्त यह, मेरे शिर धर दो।।
मेरी दीक्षा गुरुवर तेरे,
कर कमलो से हो।
श्रध्दा भक्ति विनय समर्पण, का इतना फल हो।
महापुण्य से महाभाग्य से,
गुरुवर आप मिले।
दर्शन पाकर धन्य हुआ हूँ, सारे पाप धुले।
दष्ट प्रार्थना एक हमारी, आज सफल कर दो।।
मेरी दीक्षा गुरुवर तेरे,
कर कमलो से हो।
श्रध्दा भक्ति विनय समर्पण, का इतना फल हो।
मुनि दीक्षा विन तीर्थकर भी, मोक्ष न पाते है।
इसलिए दीक्षा पाने वह, वन को जाते है।
तेरी जैसी पिच्छि मेरे, कर पल्लब में हो।।
मेरी दीक्षा गुरुवर तेरे,
कर कमलो से हो।
श्रध्दा भक्ति विनय समर्पण, का इतना फल हो।
उपरोक्त भजन आचार्य श्रीविधासागर के चरणों में दीक्षा की गुहार हेतु समर्पण है।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुंबई )
20/06/2019
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