‘राख’
“ किसी के आँगन की ज्योति हूॅ॑
वर दो !
किसी की अग्निमयी शिखा हूॅ॑
लौं दो!
किसी की ज्वाला कोष हूॅ॑
स्वप्न की मधुशाला दो!
किसी के आॅ॑खों का ख्वाब हूॅ॑
पुतलियाॅ॑ अॅ॑गार दो!
प्राण कैंसे बचाएं
कठिन है!
अग्नि तुम
समाधि दो!
किसी की मृत्यु हूॅ॑
वर दो !
दीप से दृगों में
प्यार का कण दो!
क्षार हूॅ॑ शिथिलता की
अब..!
पिघलने का वर दो!
किसी के दुखों की वजह न बनूं
नाथ ...
‘राख’ होने का वर दो!"
रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश
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