प्रेरणात्मक कविता
“माॅ॑ वीणा की अटूट कृपा हो
बनों ममता का तुम विश्वास।
अध्ययन तुम्हारा वेद सा हो
हो वाणी पर तुम्हें नियंत्रण।
माॅ॑ सरस्वती की कृपा रहें
बनों तुम संस्कृतियों के संवाहक ।
करो यशस्वी जीवन अपना
माॅ॑ का ऐसा आशीर्वांद मिले।
भागीरथी के तट पर तुम
बन जाओ युग तुलसी।
पुण्य सलिल की छाया सी
बन जाओं सच्चे अर्थों का गौरव।
बनों आधुनिक मार्गदर्शक
हो नामकरण नित रोज तुम्हारा।
करों सत्य,धर्म की रक्षा
ऐसे विवेकानन्द तुम बन जाओं।
सियाराम बन व्यास पीठ पर
खड़े रहो हर रोज।
कबीर बन तुम काव्यपाठ करों
तुलसी के श्रीराम की ।
माॅ॑ वीणा का संगीत बन
बैठों उनकी गोद में।
शब्द सत्य से अनन्त प्रेम दो
दो सबको वाणी का अमृत।
बनों मनस्वी ममर्ज्ञ, विज्ञ
नित नाम तुम्हारा रोशन हो।
यदि बन जाओं किसी रोज तुम अज्ञानी
तो भी माॅ॑ वीणा की कृपा मिलें।।"
रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश
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