ग़ज़ल
मेरा किरदार पलभर निभाये कोईमैं हूं तैयार फिर आजमाए कोई
जख्मों के पीर मिटने लगे हैं
फिर नया ठोकर मार जाए कोई
महफिल में नाम तेरा लेने से डरता हूं
बेवफा नाम तुझे दे न जाए कोई
तेरी गलियों से कहां अब गुजरता हूं
मेरे आंसुओं को तुम तक पहुंचा न आए कोई
चांद में अक्सर अक्श तेरा दिखता था
शिवा चांद को ही बेवफा लिख न जाए कोई
शिवा

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