।। बातें तुम्हारी।।
अब कहाँ गयी वो पहले की बातें तुम्हारी।छोटी सी बात को बनाती कितनी भारी।।
जब तूने पहले - पहल घर मेरे पधारी।
छोटी सी बात पे पकडी़ पिताजी की दाढ़ी।।
भाग्य पे अपने मै आज आँसू बहाता।
मेरे सुन्दर घर को बनाया तूने घारी।।
घर मे सदा तूं कोहराम हो मचाती।
बात - बात पे हमेशा तूं देती हो गारी।।
बदनसीबी का दंश झेलता पूरा परिवार हमारा।
मरी हुई माता मेरी सह रही गाली तुम्हारी।।
झूठा ही दिखाया था प्रेम का मंजर जो तूने।
पग गृह मे रखते ही ख्वाबों की मुड़ेर टूटी हमारी।।
स्वरचित मौलिक
।। कविरंग।।


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