चाह रहा फूल की, कली भी मिला नहीं
चाह रहा फूल की, मिला भी न कली ,
क्या लिखें हो हम रोशन के भाग्य में बताओ हरि !
करता हूं न फिर भी हो जाते हड़बड़ी ,
क्या कमी रहा हम,.. में जो वह छोड़कर चली !
हमसे अच्छा मिला, फिर क्यों रही कभी मेरे लिए खड़ी ,
कोरोना जैसी पतझड़ में भी होगी हरी-भरी !
उसे देखने के लिए मुख्य रास्ता छोड़कर पकड़ता हूं,
उसके घर जाने वाला गली ,
ख़ास मिल जाये पर काहे को मिलेगी
,सब लीला है तुम्हारा हरि !
कैसे भूलूं मैं वह प्रियतम रही मेरी पहली ,
भले ही आपका कृष्ण-राधा प्रेम है गहरी ,
लेकिन आप भी जुदा हुए, न आप न वह ठहरी ,
इसी लिए हमें उससे दूर किये हो ,सब जानता हूं
आपका चाल हरि !
धन्यवाद !
® रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज ,
कोलकाता
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