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क्षितिज ( द्रोपदी श्रीवास )

क्षितिज

क्षितिज कल्पना मात्र है,
वास्तविकता से परे संसार में।
खुश होकर देख रहा ये जग,
खुश हैं रोदसी क्षितिज आकार में।
चंचल पंछी क्षितिज की गान में,
कुछ धरती पर कुछ अम्बर पर,
चहकने लगे।
हँसमुख सुमन धरा की वायु से,
धरा से अम्बर तक,
महकने लगे।
मोह- माया के संसार में,
धरा और गगन शांत,
कोलाहलपूर्ण संसार में,
कवियों का हृदय शांत।
द्रोपदी श्रीवास(खुशबू)
रायगढ़(छतीसगढ़)

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