शीर्षक - प्रेम का दाह
तुम्हारे प्रेम में रहती हुई,
खुद से कई बार लड़ी मैं!
खुद को ही ज़िंदा रखने को,
खुद में कई बार मरी मैं!
मुश्किल था तेरे छल को,
भूलकर आगे बढ़ पाना!
झूठे प्रेम का दाह कर के,
खुद में साँसे भरी मैं!!
- सोनल ओमर
कानपुर, उत्तर प्रदेश
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