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जुदाई Judai kavyitri fija fatima

जुदाई


सुबह के वक़्त हाथ में कॉफ़ी का कप लिए में अपनी विंडो से स्कूल जाते बच्चो को देख रही थीं.

पीठ पर बेग टांगे हाथ में छाता लिए अपनी राह चले जा रहे थे.
उन्हें देख कर मुझे अपने बचपन के दिन याद आगे थे. 
में 8th स्टैण्डर्ड में पढ़ती थीं.
वो मेरा क्लासमेट था.
कनव पढ़ने  में बहुत होशियार था.
दिल का भी बहुत अच्छा था.
हमदोनो एक दूसरे से बहुत मोहब्बत करते थे. पूरा स्कूल हमारी मोहब्बत से वाकीफ था.
टीन एज का प्यार ज़िन्दगी की धूप छाव से अंजान था,
स्कूल से घर. घर से स्कूल बस इतनी सी मोहब्बत थी.
पूरा दिन स्कूल में मस्ती करते.
हस्सी मज़ाक करते.
टीचर के पढ़ाते वक़्त ज़ब  निगाहे टकरा जातीं तो हलकी सा मुस्कुरा देते.
ना कोई कस्मे वादे ना प्यार वफ़ा की बातें.
बस गुज़र रहा था वक़्त.
एक दूसरे के साथ बैठ कर हस्सी मज़ाक़ करना ही मोहब्बत थीं.
जुदाई क्या होती हैं.
दूरिया क्या होती हैं.
इस का तो पता ही नहीं था.
बस इतना पता था.
मोहब्बत हैं.
बिलकुल एक मासूम बच्चे की तरह जो दुनिया के धोके और फरेब से अनजान होता होता हैं.
नीचे से मम्मी ने आवाज़ लगाई कनक.
मम्मी की आवाज़ सुनकर में नीचे गई.
नीचे कनव बैठा था.
उसको देखते ही में चौक गई.
8साल बाद मैंने उसे देखा था.
उसने खडे होते हुए मुझसे कहा.
कैसी हो.
में उसे देख रही थीं.
पागल दीवानो की तरह.
8साल धूप में रहा था.
मेरे इश्क़ का पौधा.
उसकी आमद की हलकी सी एक बून्द पर वो हरा हो गया था..
मैंने उससे पूछा.
तुम यंहा.
उसने मुस्कुराकर कहा.
में यंहा मम्मी पापा के पास कुछ दिन रहने आया हु.
सोचा तुम से मिल लू.
अच्छा क्या.मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा था.
में वही सोफे पर बैठ गई.
तूमने अभी शादी नहीं की.
कणव ने पूछा.
में उसकी बात पर मुस्कुरा गई.
तूमने तो कर ली.
कहकर में खामोश हो गई.
वो मेरी तरफ देखने लगा.
फिर मैंने वही से दूसरी बात शुरू करदी.
तुम्हारी वाइफ कैसी हैं.
ठीक हैं.
उसने कहा कनक तुम तुम बदल गई हो.
तुम पहले जैसी नहीं रही.
मैंने अपने दुपट्टे का पल्लू सर पर रखते हुए कहा.
कनव बदलना तो प्ररकरती का नियम हैं.
में तो बहुत कम बदली हु.
लेकिन तुम.
तुम तो पुरे बदल गए हो
कनव मेरी नाराज़गी को समझ रहा था.
ठीक हैं.
अब में चलता हु.
कनव ने उठते हुए कहा.
ठीक हैं.
कनव मेरी तरफ देख रहा था.
उसे लगा शायद में उसे पहले की तरह जाने से रोकूंगी
कहूँगी कनव थोड़ी देर और रुक जाओ.
लेकिन उसकी ये उम्मीद करना बेकार था.
मैंने अपनी बहुत सी आदतों को बदल दिया था.
वो उठा और चला गया.
में दरवाज़े तक उसे छोड़ने भी नहीं गई.
शायद मै आज भी उससे नाराज़गी थीं.
लेकिन इस नाराज़गी का कोई फायदा नहीं था.
वो शादी कर चुका था.
अपनी ज़िन्दगी मै आगे बढ़ चुका था.
मै अपने रूम मै बैठी थीं.
मन मै अजीब तरह की हलचल थीं.
दिल ख़ुश भी था.
और उदास भी
वो बेवफा तो था.
लेकिन उसकी आमद पर मेरा दिल क्यो धड़का क्यो मुझे माज़ी की सारी बातें याद आ गयी.
कभी मै सोचती के मुझे उस से ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थीं.
फिर दिल मै ख्याल आता.
मैंने उस से बात ही क्यो की.
मुझे उस से बात ही नहीं करनी चाहिए थीं.
उस पूरी रात मै इसी उधेर बुन मै लगी रही.
सुबह ज़ब उठी तो मौसम की अजीब कैफियत थीं.
सारा आलम खूबसूरत लग रहा था.
सुबह कॉलेज जाते वक़्त रास्ते मै मेरी उस से मुलाक़ात हो गई.
मेरे पास आकर खड़ा हो गया कनक तुम्हे मै छोड़ दू कॉलेज.
मै उसकी बात अनसुनी करके आगे बढ़ गई.
वो वही खड़ा मुझे देखता रहा.
शाम को मै गार्डन मै बैठी थीं.
वो आकर मेरे पास बैठ गया.
मै वहा से उठकर जाने लगी कनव ने मेरा हाथ पकड़
कर मुझे वही बिठा लिया.
मै अटपटा रही थीं.
कनव ने मेरा मुँह अपनी तरफ करते हुए कहा.
क्या हो गया हैं. तुम्हे आखिरकार तुम मुझसे भाग क्यो रही हो.
मैंने कनव  की तरफ देखते हुए कहा.
बहुत अजीब हो गई हैं दुनिया धोका खाने वाला नज़रे चुरा रहा हैं.
और धोखादेने वाला वजह पूछ रहा हैं.
आंसु भरी आँखों से मैंने कहा.
मैं तुम्हे कभी माफ़ नहीं कर्रूँगी.
कनव क चेहरे की रंगीनीया उड़ गई थीं.
कनक लेकिन क्यो.
मैंने अपने आंसू साफ करते हुए कहा.
कनव मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी हैं.
कनव ने खड़े होते होते हुए कहा.
कनक तुम जानती हो तुम्हारी नाराज़गी मुझसे बर्दाश्त नहीं होती.
मैंने उसकी तरफ से निगाहे फेरते हुए कहा.
कनव मेरी नाराज़गी तो 8 साल से हैं.
कैसे बर्दाश की होंगी तूमने.
तुम्हे तो ख़याल भी नहीं आया होगा.
आज आयी हैं.
तुम्हे मेरी याद.
मुझे तुम्हारी हमदर्दी की कोई ज़रूरत नहीं हैं.
वो दिन और थे.
ज़ब हम बेतकल्लुफ थे.
लेकिन अब बहुत कुछ बदल गया.
कनव ने कहा कौन बदला हैं.
मै या तुम.
सब बदल गया.
वक़्त हालत तुम तुम्हारी ज़िन्दगी.
सब कुछ बदल गया.
कनक मैंने तुम्हे धोखा नहीं दिया हैं.
तुम हक़ीक़त से अनजान हो.
तुम्हे धोखा देने क बारे मै सोच भी नहीं सकता.
कनक मै तुम्हारे घर गया था.
तुम्हारा हाथ माँगने लेकिन तुम्हारी मम्मी ने इंकार कर दिया था.
मैंने उन्हें मनाने की बहुत कोशिश की लेकिन वो नहीं मानी.
मैंने कहा कनव एक बार मुझसे तो कहा होता.
मेरी ज़िन्दगी का इतना बड़ा फैसला तुम दोनों ने अकेले ले लिया एक बार भी नहीं पूछा के मै क्या चाहती हु.
तुम्हे पता हैं.
इन 8 सालो मै ऐसा एक भी दिन नहीं गुज़रा होगा ज़ब मैंने तुम्हे याद ना क्या हो.
सारी सारी रात मोबाइल हाथ मै लेकर सोती रही.
और तुम तूमने कभी ये भी नहीं सोचा.
के एक बार भी कर लू.
मै बहुत बड़ी पागल हु कनव मै तरसी हु तुम्हे देखने के लिए तुमसे बात करने क लिए.
तुम मम्मी से बात करके फ़ोन रख देते थे.
लेकिन मेरे बारे मै पूछना तक ज़रूरी नहीं समझते थे.
कनव की आंखें नम हो गई थी.
लड़खड़ाती आवाज़ मै बोला.
मुझे लगा शायद तुम मुझे भूल गई होंगी.
इसलिए मैंने कभी तुमसे बात नहीं की कही तुम डिस्टर्बे ना हो जाओ.
कनक कभी कभी ज़िन्दगी वक़्त और हालत बहुत अजीब हो जाते हैं.
मेरी गलती इतनी हैं.
की मै तुम्हे ये बता नहीं सका के तुम्हारी मम्मी ने इंकार कर दिया हैं.
मै नहीं चाहता तुम अपनी मॉ से दूर हो जाओ.
तुम्हारी ज़िन्दगी मै सिर्फ तुम्हारी माँ हैं.
बहुत परेशानियाे से पाला था.
उन्होंने तुम्हे.
मैंने बेवफा बन जाना ही बेहतर समझा.
जो दर्द आज तुम्हारे दिल मै हैं.
वो तुम्हारी माँ के दिल मै होता तुम्हारी जुदाई का.
कनक बच्चो की जुदाई क्या होती हैं.
शायद तुम नहीं जानती. 
मै भी अपने मॉ बाप से दूर हु.
रोता हु.
जब्ब पापा की याद आती हैं.
तुम ख़ुशनसीब लगती हो मुझे क्योकि तुम अपनी पूरी  क़ायनात अपनी मॉ के पास हो.
कनक कोई भी जुदाई मॉ बाप की जुदाई से ज़ियादा गहरा ज़ख़्म नहीं देती.
अपने हाथों से मैंने कनव के आंसू साफ किये.
उसने मेरे हाथ थामते हुए कहा.
कनक मै अपनी गलती की माफ़ी चाहता हु.
मुझे माफ़ करदो.
उसके हाथो पर मैंने अपना माथा टेक दिया.
और ज़ार ओ कतार रोने लगी.
उसने अपने हाथों को मेरे हाथों मै लेते हुए कहा.
कनव दुनिया मै सब कुछ दोबारा मिल जायेगा.
लेकिन मॉ दोबारा नहीं मिलेगी.
जो हुआ वो शायद कुदरत का ही फैसला था.
और तुम तो मेरी बहादुर दोस्त हो.
उसकी बात सुनकर मेरी आँखों से आंसू छलक गए.
पागल रो क्यो रही हैं.
लाउ लाठी.
कहकर कनव हस पढ़ा .
बचपन के दिनों के कुछ अलफ़ाज़ बेतकल्लुफी वाले सुनकर मै खिलखिलाकर हस पड़ी. 

नाम- ----फ़िज़ा फातिमा
उत्तरप्रदेश --पीलीभीत.

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